पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२५

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विद्यापति ।। ३०३ शैखिकुल नाचत अलिकुल जन्त्र । आन द्विजकुल पड़ आशीषमन्त्र ॥१०॥ इन्द्रातप उड़े कुसुमपराग ।मलय पवन सह भेल अनुराग ॥१२॥ हुन्दवल्ली तरु धरल निशान । पाटल तूण अशोकदल वान ॥१४॥ शुक लवङ्गलता एक सङ्ग । हेरि शिशिर ऋतु आगे देल भङ्ग ॥१६॥ सैन्य साजल मधुमक्षिककुल । शिशिरक सबहु कयल निरमल ॥१८॥ उधारत सरसिज पाओल प्राण । निज नव दले करु आसन दान ॥२०॥ नववृन्दावन राज्ये विहार । विद्यापति कह समयक सार ॥२२॥ कवि । नव वृन्दावन नव नव तरुगण नव नव विकसित फुल ।। नवल वसन्त नवल मलयानिल मातल नव अलिकुल ॥२॥ विहरइ नवल किशोर ।। कलिन्दि पुलिन कुजवन शोभन नव नव प्रेम विभोर ॥४॥ नवल रसाल मुकुल मधु माति नव कोकिलकुल गाय ।। नव युवतीगण चित उमतायइ नव रसे कानने धाय ॥६॥ नव युवराज नवल नव नागरी मिलये नव नव भॉति ।। निति निति ऎसन नव नव खेलन विद्यापति मति माति ॥८॥ कवि । ६ ०७ मधुऋतु मधुकर पॉति । मधुर कुसुम मधुमाति ॥ २ ॥ मधुर वृन्दावन माझ । मधुर मधुर रसराज ॥ ४ ॥