पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति । w•••••••••••

माधव । ५२ सहजहि आनन सुन्दर रे भेउह सुरेखलि शॉखि । पङ्कज मधु पिवि मधुकर उड़ ए पसारए पॉखि ॥ २ ॥ ततहि धोल दुहु लोचन रे जतहि गेलि वर नारि ।। थासा लुबुधल न तेजए रे कुपनक पाछु भिखारि ॥ ४ ॥ इङ्गित नयन तरङ्गित देखल चाम भउँह भेल भङ्ग । तखने न जानल तेसरे गुपुत मनोभव रङ्ग ॥ ६ ॥ चन्दने चरचु पयोधर गुम गजमुकुता हार । भसमे भरल जनि शङ्कर सिर सुरसरि जल धार ॥ ८ ॥ चाम चरण अनुसार दाहिन तेजइते लाज । तखन मदन सरे पूरल गति गज्जए गजराज ॥ १० ॥ अाज जाइते पथ देखाल रे रूपे रहल मन लागि । तेहि खन सञो गुन गौरव रे धैरज गेल भागि ॥ १२ ॥ रूप लागि मन धाल रे कुच कञ्चन गिरि सॉधि । ते अपराधे मनोभव रे ततहि धएल जनि बॉधि ॥ १४ ॥ विद्यापति कवि गोल रे रस बुझ रसमन्ता । रूपनरायन नागर २ लाखमा देविक सुकन्ता ॥ १६ ॥ ( ४ ) आशा से लुब्ध है। फर जैसा भिखारी कृपण का पीछा नहीं छोड़ता है वैसा ही * नयन उसके पीछे गया। (१३) साधिसन्धि।