पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८ विद्यापति । AJARAMMM maaamanarswamhamaramana माधव । ५२ सहजहि अानन सुन्दर रे भेउह सुरेखलि प्रॉखि । पङ्कज मधु पिवि मधुकर उड़ ए पसारए पॉखि ॥ २ ॥ ततहि धाोल दुहु लोचन रे जतहि गेलि वर नारि । भासा लुबुधल न तेजए रे कूपनक पाछु भिखारि ॥ ४ ॥ इङ्गित नयन तरङ्गित देखल बाम भउँह भेल भङ्ग । तखने न जानल तेसरे गुपुत मनोभव रङ्ग ॥ ६ ॥ चन्दने चरचु पयोधर गृम गजमुकुता हार । भसमे भरल जनि शङ्कर सिर सुरसरि जल धार ॥ ८॥ धाम चरण अनुसारल दाहिन तेजइते लाज | तखन मदन सरे पूरल गति गजए गजराज ॥ १० ॥ आज जाइते पथ देखालि रे रूपे रहल मन लागि । तेहि खन सञो गुन गौरव रे धैरज गेल भागि ॥ १२ ॥ रूप लागि मन धाोल रे कुच कञ्चन गिरि सॉधि । ते अपराधे मनोभव रे ततहि धएल जनि बोधि ॥ १४ ॥ विद्यापति कवि गायोल रे रस बुझ रसमन्ता । रूपनरायन नागर रे लखिमा देविक सुकन्ता ॥ १६ ॥ (४) प्राशा से लुप्ध हो कर जैसा भिसारी कृपण का पीछा नहीं छोड़ता है घेसा ही नयन उसके पीछे गया। (१३) राधि सन्धि ।