पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२८९

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विद्यापति ।

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२७१ विद्यापति। wwwwwwwwwww राधा । -- ५३६ सजनि की कहब कौतुक ओर । अलखि ते हाथ हाथ मोर सरवस मान रतन गेओ चोर ॥२॥ अवनत चयने जवहुँ हम वइसल विगलित कुन्तल भार। उरे अम्बर ससरि सूत चरण धरि गॉर्थिय मोतिम हार ॥४॥ लहु लहु पद करि नूपुर परिहरि कैसे आओल सेह ढीठ । शिर सपथि दुइ सन्विगणे निषेधइ नुकि रहल मझु पीठ ॥६॥ भृगमदचन्द ने मन भेल चञ्चल हेरइते वाङ्किम गम। चिवुक चिकुरे धरि मुख समुखे करि चुम्वय चयनक सीम ॥८॥ घन घन चुम्वन दृढ़ परिरम्भन रहल हिये हिये लागि । कविशेखर कह मदन सूति रह चमक उठ्य जनु जागि ॥१०॥ राधा । ५ ३६ सबहुँ अपन भवन गेल । सुवदन चित चमक भेल ॥ २ ॥ नासा पराश रहल धन्द । ईपत हसय वयन चन्द ॥ ४ ॥ सखिहे अपरुव वर कान । कँहा गेल मझ सेहन मान ॥ ६ ॥ जे किछु कहल रसिक राज । कहिते अवहु वासिय लाज ॥ ६ ॥ विद्यापति कह ऐसन कान । दास गोविन्द रस भनि ॥१०॥