पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२४४

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२३० विद्यापति । Now wenn wir ayw suuwwwww wwwww सखी । ४५२ कण्टक दोसे केतकि सञो रूसल हठे आएल तुअ पासे । भल न कएल तोहे अपद अधिक काहे भमर के चोलल उदासे ॥२॥ जातकि अनुचिन एक बड़ भेला । निअ मधुसार सॉचि तोहे राखल भमर पिआसल गेला ॥४॥ ओहो भमर मधुसार विवेचक गुरु अभिमानक गेहा । गुरु पद छाडि पुनु नहि आश्रोत देखवा भेल सन्देहा ॥६॥ सेहओ सुचेतन गुनक निकेतन सहि कुसुम रस लेइ । जेहे नागरि वुझ तकर चतुरपन सेहे न परिहरि देइ ॥८॥ -- --- ठूती । ४५३ भमइते भमर भरमे जो भुललाहे आन लता नहि पासे । एतवा रौस दोस बस भए रहू दूर कर हृदअ उदासे ॥२॥ जइअ सरोवर हिमकर निअ करे परसए सवहु समाने । कुमुदिनिकों ससि ससिको कुमिदिनि जीवन के नाहि जाने ॥४॥ जेहन तोहर मन तह्निको तइसन कत पतिश्नउवि हे भाखी । जगत विदित थक सबको सवतह मनको मन थिक साखी ॥६॥