पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२१

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... विद्यापति । १६ माधव । ३५ अपरुव पेखल सोई ।। कनक लतानै उयल किए हिमकर ऐसन लागल मोइ ॥ ३॥ कुटिल केश चञ्चल अति लोचन नासा ऑतर भीन । राग अधर दशन मनि भेटल दुहु कुच दुहु कठीन ॥ ४ ।। त्रिवलिक माझे तसु निवि बान्धल नाभि सरोवर गोइ । भारि जघन सम्बत रहु दुबारे परदुखे दुखि नइ कोइ ॥ ६ ॥ (१) सीइ उसके । माधव । सजनि अपरूप पेखल रामा । कनक लता अवलम्वन ऊयल हरिणहीन हिमधामा ॥२॥ नयन नलिन दउ अञ्जने रजई भौंह विभङ्ग विलासा ।। चकित चकोर जोर विधि बान्धत केवल काजर पासा ॥ ४ ॥ गिरवर गरुको पयोधर पराशत गीमे गजमोतिम हारा ।। काम कम्बु भरि कनय शम्भु परि ढारत सुरधुनि धारा ॥ ६ ॥ पयसि पयागे जाग शत जागइ सोइ पाए वह भाग । विद्यापति कह गोकुलनायक गोपी जन अनुरागी ॥८॥ (५) गीम=प्रीया। (७) पयागे= प्रयागे ।