पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१९३

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विद्यापति । १८

मानिनि अपनेहु मने अनुमान । रुसइते नहु बोल अगेशान ।।४।। हाटक घटन सिरीफल सुन्दर कुचजुग कुटि करु आधे । पानि परस रस अनुभव सुन्दर न करु मनोरथ बाधे ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति सुन वरजौवति विभव दया थिक सारा ।। माह छाह ककरो नहि भावय ग्रीपम प्रान पियारा ॥८॥

  • मधु कढल

पर देखि माधव । । ३५५ वदन चॉद तोर नयन चकोर मोर | रूप अमिय रस पीवे ।। अधर मधुरि फुल पिया मधुकर तुल विनु मधु कत खन जीवे ॥ २ ॥ मानिनि मन तौर गढ़ल पसाने । कके न रभसे हसि किछु न उतर देसि सुखे जाओ निसि अवसाने ॥ ४ ॥ पर मुखे न सुनसि नियमने न गुनसि न चुकसि छइलरि बानी । अपन अपन काज कहइते अधिक लाज अरथित आदर हानी ॥ ६ ॥ कवि भने विद्यापति अरेरे सुन जुवति नेह नुतन भेल माने। लखिमा देवि पति सिवसिंह नरपति रूपनरायन जाने ॥ ८॥