पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१८

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विद्यापति ।।

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- माधव । २६ चिकुर निकर तम सम पुनु आनन पुनिम ससी । नअन पङ्कज के पतिआशोब एक ठाम रहु वसी ॥२॥ आजे मोजे देखल वारा। लुवुध मानस चालक मन कर की परकारा॥४॥ सहज सुन्दर गौर कलेवर पीन पधर सिरी । कनअलती अति विपरित फलल जुगल गिरी ॥६॥ भन विद्यापति विहिक घटन के न अदबुद जाने । राए सिवासिंह रूपनराएन लखिमा देवि रमाने ॥८॥ (२) वारा=बाला । ( ४ ) मयन=मदन परकारा=उपाय । (५) नय=कनक। (७) अदबुद-अद्भुत । माधव । | ३० अमिअक लहरी वम अरविन्द । विद्म पल्लव फूलल कुन्द ॥२॥ निरवि निरवि मौजे पुनु पुनु हेरु । दुमन लता पर देखल सुमेरु ॥४॥ सॉच कहो मोझे साखि अनङ्ग । चान्दक मण्डल यमुना तरङ्ग ॥६॥ कोमल कनकके मुति पात । मसिलए मदने लिखल निज वात ॥८॥ पढ़हि न पारिप आखर पाति । हेरइते पुलकित हो तनु काति ॥१०॥ भनइ विद्यापति को वुझाए । अरय असम्भव के पतियाये ।।१२।। । (२) विम-प्रचलि। प्रचलिपल्लव= Bधर कुन्द पुष्प दन्त । (३) निरयि= निश्चित कर के। (७) कनकके=कनीया । मुसि = मूर्छि ।