पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१५१

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विद्यापति ।

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दूती २८५ माधव धनि यिलि कत भाति । प्रेम हेम परखाओल कसोटिय भादव कुहु तिथि राति ॥ २ ॥ गगन गरज घन ताहे न गन मन कुलिस न कर मुख बङ्का । तिमिर अञ्जन जलधारे धोय जनि ते उपजावति सङ्का ॥ ४ ॥ भागे भुजग सिरे करे अभिनय करे झॉपल फनि मनि दीपे । जानि सजल घन से देइ चुम्बन ते तुय मिलन समीपे ।। ६ ।। नारि रतन धनि नागर ब्रजमनि रस गुने पहिरल हारे । गोविन्द चरण मन कह कविरञ्जन सफल भेल अभिसारे ॥ ८ ॥ राधा २६६ चन्दा जनु उग आजु कि राती । पिया के लिखिए पठाउवि पाती ॥ २ ॥ साओन सञो हमे करब पिती । जत अभिमत अभिसारक रीती ॥ ४ ॥ अथवा एहु वुझाव हसी । पिवि जनु उगिलह सितल ससी ॥ ६ ॥ कोटि रतन जलधर तोहे लेह । आजुकि रअनि घनतम कए देह ॥ ८ ॥ भनइ विद्यापति शुभ अभिसार । भल जन करथि पर उपकार ॥१०॥ 14