पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति । » • wwwvvv - - - - - -

  • -
  • -

-

दूती । | २३ सुधामुखि के विहि निरमिल बाला । अपरुव रूप मनोभव भङ्गल त्रिभुवन विजयी माला ॥२॥ सुन्दर बदन चारु अरु लोचन काजरे रञ्जित भेला । कनक कमल माझे काल भुजङ्गिनि शिरियुत खञ्जन खेला ।।४।। नाभि विवर सजे लोम लतावलि भुजारी निशास पियासा । नासा खगपति चक्षु भरम भये कुच गिरि सन्धि निवासी ॥६॥ तिन बान मदन तेजल तिन भुवने अवधि रहल देउ वाने। --- विधि बड़ दारुण बधइते रसिक जन सौपल तोहर नयाने ॥८॥ भनइ विद्यापति शुन चरयुवति इह रस के पय जाने । राजा शिवसिंह रूपनरायन लखिमा देवि रमाने ॥१०॥ | ( १० ) रमाने ब्रमण, वल्लभ। ( सखीसे सखी ) २४ धनि मुख मण्डल चान्द विराजित लोचन खञ्जन भॉति ।। मदन चाप जिनि भह लग युग दुशनहि मोतिम पॉति ॥२॥ सखि हेर रमन मोहिनि राइ । कत कत विदगध हेरितहि मुछित मदन पराभव पाइ ॥४॥ कनक विरोचि मनिहार विलम्बित अधरहि विम्बु अकारा। नव उरज पर मोति विरोचित सुमेरु सुरसरिधारा ॥६॥ (५) विरोचि=विरचित। (६) सुरसरि= सुरसरित, गट्ठा ।