पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१६ -*-*-

- -*-

विद्यापति । 18:14, 13 February 2019 (UTC)18:14, 13 February 2019 (UTC)18:14, 13 February 2019 (UTC)18:14, 13 February 2019 (UTC)18:14, 13 February 2019 (UTC)18:14, 13 February 2019 (UTC)अजीत कुमार तिवारी (talk) 18:14, 13 February 2019 (UTC) माधव । जुगल सैल सिम हिमकर देखल एक कमल दुइ जोति रे । फुलाल मधुरि फुल सिन्दुर लोटाएल पॉति वइसलि गजमोति रे ॥२॥ आज देखल जत के पतिशाएत अपरुव विहि निरमाण रे ॥३॥ विपरित कनक काल तर सोभित थलपङ्कज के रूप रे ।। 811 तथहुँ मनोहर बाजन वाजए जनि जगे मनसिज भूप रे ॥५॥ भनइ विद्यापति एह पूरब पुन तह ऐसनि भजए रसमन्त रे । बुझए सकल रस नृप सिवसिंघ लाखमादेइकर कन्त रे ॥७॥ -=-= -=- = (३) अधर और दन्त का वर्णन । ( ४ ) ऊस र चरण । (५) नूपुर ध्वनि। माधव । २० अधर सुशोभित बदन सुछन्द । मधुरी फूले पूजू अरबिन्द ॥ २ ॥ तहु दुहु सुललित नयन सामरा । विमल कमल दल वइसले भमरा ॥४॥ विशेखि न देखाले ए निरमल रेमनी । सुर पुर सञो चलि आइलि गजगमनी॥६॥ गिम सञो लावल मुकुता हारे । कुच जुग चकेव चरइ गङ्गाधारे ॥८॥ भनइ विद्यापति कविकण्ठहार । रस बूझ शिवासंह नृप महोदार ॥१०॥ (५) विशेसि=विशेष, उत्तम । (९) कविकण्टहर=विद्यापति ठाकुर की उपाधि ।