पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१२९

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विद्यापति । १२७ - - - सखी । २४६ वरि अनुचरि कय अनुमान । देहरि लागि बुझे वचन सन्धान ॥ २ ॥ ल नहि देखल एक लोक । सुख सजो सृतल नहि दुख शोक ॥ ४ ॥ क कण्टक सब भेल दूर । सब एक जागय मनमथ शूर ॥ ६ ॥ र निचल भेल निरजन बाट। दुरजन नयनहि लागल कवाट ॥ ८ ॥ पैशेखर कह पन्य विद्यार। अभिसर सुन्दरि भय नहि आर ॥१०॥ सखी । २५० जिनि करिबर राजहंसगति गामिनि चललिह सङ्केत गेहा ।। अमल तड़ित दण्ड हेम मञ्जीर जिनि अति सुन्दर देहा ॥ २ ॥ जलधर चामर तिमिर जिनि कुन्तल अलका शृङ्ग शैवाले । भौंह मदन धनु भ्रमर भुजद्भिनि जिनि आध विधवर भाले ॥ ४ ॥ नलिनि चकोर सफर सब मधुकर मृग खञ्जन जिन ऑखी । नासा तिल फुल गरुड चञ्चु जिनि गिधिनी श्रवणे विशेखी ॥ ६ ॥ कनक मुकुर शशि कमल जिनिय मुख जिनि विम्ब अधर पवारे । दशन मुकुता पॉति कुन्द करगबीज जिनि कम्बु कण्ठ अकारे ॥ ८ ॥ वेल ताल युग कनय कलस गिरि कटोरि जिनिय कुच साजा । बाहु मृणाल पाश बल्लरि जिनि सिंह डमरु जिनि माझा ॥१०॥ लोम लतावलि शैवाल कज्जल त्रिबाले तरङ्गिन रङ्गा । नाभि सरोवर सरोरुह दल जिनि नितम्ब जिनिय गज कुम्भा ॥१२॥ उरुयुग कदलि करिबर कर जिनि थल पङ्कज जिनि पद पानी । नख दाडिम वीज इन्दु रतन जिनि पिकु अमिय जिनि वानी ॥१४॥ भनई विद्यापति सुनह मधुरमति राधा रूप अपारा ।। राजा सिवसिंह रूप नरायन एकादश अवतारा ॥१६॥