पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१२६

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| १२० विद्यापति । दूती । | सहसे सञ्चर २३५ बारिस जामिन कोमल कामिनि निदारुण अति अन्धकार । पय निशाचर धन पर जलधार ॥२॥ माधव प्रथम नेहे से भीति । गये अपनाह सेञ विलौकिय कृरिय तैसनि रीति ॥४॥ अति भयाउनि आतर जउनि कृइसे कए आउति पार । सुरतरस सुचेतन बालभु ता पति सवे असारे ॥६॥ एत सुनि मने विमुख सुमुखीं तोह मने नहि लाज । केतए देखले मधु अपने जा मधुकर समाज ॥ सखीं। २३६ जागल घर पर निन्दे भेल भैर। सैज तैजल उठ नन्दकि सघने गगने हेरि नखतर पाति । अवधिं न पाओल छूटल र जलधरे रुचिहर सामर केन । यवन भनि वैशधुरु कृत भात ॥ धान अनुरागिनि जानि सुजान । घोर अँधियारे करल पेय पर नारि पिरितिक ऐसन रीत । चलल निभृत पथेने मान्य कुसुमित कानन कालिन्दि तीर । तहों चाल अलि गोकुल शखर पन्य पर मिलल जाहि । अनिल नागर भट जल उठे नन्दकिशोर ॥ ३ ॥ औल छूटल राति ॥ ४ ॥ मोहन वेश धरु कत भॉति ।। ६ ।। करले पयान ॥ ८॥ थिन मानय भीत साँचा:१०॥ अलि गोकुल वीर१२॥ टल राहि ॥१४