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विदेशी विद्वान्


न हो सके। उनकी स्त्री को क्षय-रोग हो गया। स्त्री के इलाज से पामर ने अपना सारा धन फूँँक दिया और ऋणी भी हो गये, परन्तु वह न बची। १८७९ में उन्होंने अपना दूसरा विवाह किया। १८७० से लेकर १८८१ तक बहाउद्दीन की कविता, अरबी का व्याकरण, कुरान का अनुवाद, फारसी का कोश, फ़ारसी-अँगरेज़ी-कोश, हाफ़िज़ शीराज़ो की कविता, ख़लीफ़ा हारूनुर्रशीद की जीवनी आदि कोई बीस छोटी-बड़ी पुस्तके उन्होंने लिखी।

१८८१ मे ईजिप्ट मे घोर विप्लव हुआ। विप्लव-कारियों का मुखिया था अरबी पाशा। वह आसपास की असभ्य मुसलमान जातियों को जिहाद के उपदेश द्वारा अँगरेज़-अधि- कारियों के विरुद्ध भड़काने लगा। इंगलेड के राजनीतिज्ञ इस बात से बड़े चिन्तित हुए। उन्हे भय हुआ कि यदि असभ्य जातियाँ अरबी पाशा से मिल गई तो स्वेज की नहर की खैर नही, और साथ ही ईजिप्ट देश से भी हाथ धोना पड़ेगा। पामर की योग्यता की ख्य़ाति देश भर में फैल चुकी थी। सन्आ जाकर और वहाँ निर्दिष्ट काम करके उन्होने यह भी सिद्ध कर दिया था कि अरबी बोलनेवाली असभ्य जातियों से काम निकालने में उनसे अधिक चतुर देश भर में कोई नहीं। अतएव गवर्नमेट की नज़र इन्हीं पर पड़ी। काम बड़ा कठिन था। ईसाइयों के विरुद्ध भड़की हुई असभ्य जातियों को अरबी पाशा से न मिल जाने का इन्हे उपदेश देना था। परन्तु पामर