उनके पिता की बहन ने उनका लालन-पालन किया। जब वे
कुछ बड़े हुए तब पाठशाला मे पढ़ने के लिए भेजे गये। लड़क-
पन ही से उन्हे अन्य भाषायें सीखने का शौक था। पाठशाला
से उन्हे जो समय मिलता उसमे उन्होंने गिप्सी लोगों की
भाषा सीख ली। जो पैसे उन्हे जेब-खर्च के लिए मिलते उन्हें
वे लोगों को दे-देकर रोमेनी भाषा की शिक्षा प्राप्त किया करते।
थोड़े ही दिनों में उन्होने उस जंगली भाषा के शब्दकोष को
रट डाला। गिप्सियां के डेरों में जा-जाकर और उनसे उनकी
भाषा ही मे बात-चीत करके उन्होंने शीत्र हो वह भाषा बोलने
और समझने का इतना अभ्यास कर लिया कि वे असभ्य से
असभ्य गिप्सी के भाषण को खूब अच्छी तरह समझ लेने
लगे। रोमेनी सीखने का फल यह हुआ कि उन्हें गिप्सी
लोगों के आन्तरिक जीवन की बहुत सी बातें मालुम हो गई
और वे लोग भी उनसे निःसङ्कोच मिलने और उनसे बात-
चीत करने लगे।
पामर अधिक काल तक पाठशाला मे न रह सके। पढ़ना छोड़ते ही उन्होने लन्दन के एक सौदागर के यहाँ नौकरी कर ली। जो समय मिलता उसमे उन्होने फ्रेञ्च और इटालियन भाषाओं का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। यद्यपि उन्हे पढ़ने- लिखने का बड़ा शौक था; परन्तु वे कोरे किताबी कीड़े न थे। विदेशी भाषाओं के सीखने में उन्होंने पुस्तकों का विशेष आश्रय न लिया। जिस भाषा को वे सीखते उस भाषा के बोलने-