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विदेशी विद्वान्

अलबरूनी के इन सब ग्रन्थो में पाण्डित्य कूट-कूटकर भरा हुआ है। अब भी बड़े-बड़े विद्वान उन्हें देखकर मुग्ध हो जाते हैं और उनके रचयिता की हज़ार मुख से प्रशंसा करते हैं। अलबरूनी अरबी और संस्कृत दोनों ही भाषाओं का उत्कृष्ट विद्वान् था। उसमें दोनों देशों के ज्ञानभाण्डार का सार सङ्कलन करने की असाधारण शक्ति थी। यह बात उसकी इंडिका से अच्छी तरह प्रकट होती है।

अलबरूनी ने भारतवर्ष-विषयक बातो को यथारीति अध्ययन करने की यथेष्ट चेष्टा की। उसने नरेशो की नामावली और लड़ाई-झगड़े की बातो को लेकर समय नष्ट नहीं किया। केवल हिन्दू-सभ्यता के निदर्शन-भूत दर्शन, विज्ञान, गणित, ज्योतिष और विविध प्राचार-व्यवहारों का विस्तृत विवरण सङ्कलित करने की उसने चेष्टा की। उस समय काश्मीर और काशी संस्कृत-शिक्षा के केन्द्र-स्थान थे। परन्तु वहाँ मुसलमानों को घुसने की आज्ञा न थी। इस पर अलबरूनी ने बड़ा अफ़सोस जाहिर किया है। इसी लिए सिन्ध जाकर उसने संस्कृत सीखी और वहीं से ग्रन्थो का संग्रह प्रारम्भ किया। पर वेचारा, अर्थाभाव के कारण, मनमाने ग्रन्थों का संग्रह न कर सका। इसका उल्लेख उसने इंडिका में कई जगह किया है।

अलबरूनी में सबसे बड़ा गुण यह था कि वह विद्वान् होने पर भी अध्ययनशील था और मुसलमान होने पर भी