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विदेशी विद्वान्

योरप में सबसे पहले जिसने ज्योतिष-विद्या का सच्चा ज्ञान प्राप्त किया उसका नाम कोपर्निकस था। प्रशिया देश में, विश्चुला नदी के किनारे, थार्न नामक नगर में, १४७२ ईसवी के जनवरी महीने की १६वी तारीख़ को, उसका जन्म हुआ। उसके माता-पिता धनवान् न थे; परन्तु निरे निर्धन भी न थे। उसने क्रोको की पाठशाला मे वैद्यक, गणित और ज्योतिष का अभ्यास अच्छी तरह किया। जब वह २३ वर्ष का हुआ तब पाठशाला छोड़कर इटली मे आया और रोम नगर मे गणित का अध्यापक हो गया। रोम मे बहुत वर्षों तक रहकर और विद्या के बल से अपनी कीर्ति को दूर-दूर तक फैलाकर वह अपनी जन्म-भूमि को लौट गया। वहाँ अपने मामा की सहायता से उसे, गिरजाघर से सम्बन्ध रखनेवाली एक नौकरी मिली। कोपर्निकस ने ज्योतिष-विद्या का विचार यही मन लगाकर किया। पहले के ज्योतिपियों के सिद्धान्त उसने भ्रम से भरे हुए पाये। इस लिए बड़े ध्यान से ग्रहों की परीक्षा करके उसने यह सिद्धान्त निकाला कि सूर्य बीच मे है और पृथ्वी इत्यादि दूसरे ग्रह उसकी प्रदक्षिणा करते हैं। यही सिद्धान्त ठीक है। कोपर्निकस ने जो पुस्तक इस विषय की लिखी वह १३ वर्षों तक विना छपी पड़ी रही। उसके मरने के कुछ ही घण्टे पहले उसे उस पुस्तक की छपी हुई एक प्रति देखने को मिली। उसे उसने हाथ से छुकर ही सन्तोप माना और दूसरी के लाभ के लिए उसे छोड़फर परलोक की राह ली। रोम में एक धर्मा-