विद्यालय भेज दिया। वहीं बालक हार्स्ट की शिक्षा प्रारम्भ
हुई। कई साल तक पढ़ने के बाद आप बिना कोई पदवी
प्राप्त किये वहाँ से लौट आये और घर में रहने लगे।
युवावस्था
अब आपका समय व्यर्थ गप्पाष्टक और थियेटरबाज़ी में नष्ट होने लगा। इसी समय थियेटर में तमाशा करनेवाली एक परमा सुन्दरी पर आप आसक्त हो गये। आपने उसके साथ विवाह करना चाहा। पर आपके कुटुम्बियों ने इसे अनुचित समझकर इस विवाह को न होने दिया। इस पर हार्स्ट साहब ने प्रसिद्ध अँगरेज़ी कवि बाइरन के चरित्र का अनुकरण किया। कई वर्ष बाद एक अन्य स्त्री के साथ विवाह होने पर आपकी यह आवारागर्दी जाती रही। अथवा यों कहिए कि आपकी काया पलट गई।
अखबारी दुनिया में प्रवेश
आवारागर्दी के ज़माने में एक दिन आपकी इच्छा हुई कि हम भी कोई समाचार-पत्र निकालें। इस इच्छा को कार्य मे परिणत करने के लिए आपने अपने पिता से सहायता मॉगी। सुनते ही वृद्ध पिता को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने इस काम मे धन नष्ट करना उचित न समझा; इसलिए अपने पुत्र से इस इच्छा को त्याग देने के लिए कहा। पर हार्स्ट ने न