यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६९
डाक्टर कीलहार्न
लेख निकलते थे। जब तक डाक्टर बूलर रहे, इसका सम्पादन
करते रहे। उनके मरने के बाद डाक्टर कीलहार्न ही ने उसे
चलाया। डाक्टर कीलहार्न और बूलर ने इस पुस्तक का
सम्पादन ऐसी योग्यता से किया, और संस्कृताध्ययन तथा
पूर्वी-पुरातत्त्व-विषयों का इतना प्रचार किया कि नये-नये जर्मन
विद्वान् पैदा हो गये और इस पुस्तक में बड़े-बड़े महत्त्वपूर्ण
लेख निकलने लगे।
दुःख की बात है कि ऐसा विद्वान् संसार से उठ गया। डाक्टर साहब अभी बहुत बूढ़े न थे। आपकी उम्र कोई ६५ वर्ष की रही होगी। खूब तगड़े थे। लिखने-पढ़ने में जवानों की तरह काम करते थे। समय आ जाने पर मृत्यु न उम्र देखती है, न दशा देखती है, न और ही किसी बात को देखती है। उसका शासन अनुल्लङ्घनीय है।
[दिसम्बर १९०८
_______