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मुग्धानलाचार्य्य
कोई संस्कृत मे पत्र लिखता था तो वे उत्तर में साफ़ कह देते थे
कि भाई. हमें संस्कृत लिखने का अभ्यास नहीं। वे बड़े ही
सच्चे, साधु-स्वभाव और भारतहितैषी थे। हमने पहले पहल
उन्हें एक छोटी सी पुस्तक भेजी। उसके पहुँचते ही आपने
अपनी एक पुस्तक हमें भेज दी और साथ ही अपना हस्ता-
क्षरित फ़ोटो भी भेजा। इस बात को कोई १८ वर्ष हुए।
[ जून १९०८
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