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मुग्धानलाचार्य्य


No more delight my gaze. they droop and fade; Deep is their sorrow for their absent lord.

संस्कृत शब्द “शशिन्” कहने से जो भाव हृदय मे उदित होता है वह मुग्धानल के “Moon” ( चन्द्र ) से कभी नहीं होता। ख़ैर, इसे हम अँगरेज़ी भाषा की न्यूनता समझ लेते हैं। ( They droop and fade ) अर्थात् वे मुरझा जाती हैं—यह आपने अपनी तरफ़ से जोड़ दिया है। ख़ैर, यह भी क्षमायोग्य निरङ्कुशता है; क्योंकि मुरझाने, कुम्हलाने या झुक जाने का भाव ध्वनि से निकल सकता है। पर आचार्य्य ने चौथी लाइन में जो यह लिखा है कि―“अपने अनुपस्थित ( ग़ैर हाज़िर ) पति के कारण उन्हें बहुत बड़ा दुःख है”― सो किसी तरह क्षमायोग्य नही। पहले तो “प्रवास” का पूरा-पूरा अर्थ “absent” ( अनुपस्थित―ग़ैर हाज़िर ) से नहीं निकल सकता, क्योंकि “अनुपस्थिति” से थोड़ी देर का भी अर्थ निकल सकता है, पर “प्रवास” से नहीं। फिर यह कहना कि कुमुदिनियों का पति घर पर नहीं है, इससे उन्हे महादुःख हो रहा है, मानों कालिदास के भावार्थ का सत्या- नाश करना है। कवि तो प्रत्यक्ष तौर पर कुमुदिनियों के दुःख की बात ही नहीं कहता। वह तो कहता है कि जितनी स्त्रियाँ―नहीं अबलायें―हैं सभी को पति का वियोग खलता है। जब सभी का यह हाल है तब कुमुदिनियो को दुःख होना ही चाहिए। वे स्त्री-जाति से बाहर नहीं। यहाँ पर