श्रम और बहुत ख़र्च आपने उठाया। यह सब विशेष करके इसलिए कि वैदिक संस्कृत-साहित्य-सम्बन्धी अच्छे-अच्छे ग्रन्थ आप लिख सकें। आपका यह सदुद्योग सर्वथा प्रशंसनीय और अभिनन्दनीय है। यहाँ के “नेटिव” विद्वानों के “मन- मुकुर” का मालिन्य न मालूम कब दूर होगा। न मालूम कब वे सोत्साह संस्कृताध्ययन में लगेंगे, कब वे अनुसन्धान- पूर्वक नई-नई बातें जानने का यत्न करेगे: कब अच्छी-अच्छी पुस्तकें लिखने अथवा पुरानी पुस्तकों का पुनरुद्धार करने के लिए अग्रेसर होंगे। स्वामी-नारायण-सम्प्रदाय-सम्बन्धी व्यवस्था देने, अथवा एकादशी आज है या कल, इस पर विवाद करते बैठने आदि कामो से उन बेचारों को अवकाश कहाँ!
आचार्य्यवर मुग्धानल इस देश के विद्वानों से मिलने की इच्छा से भी भारत भ्रमण करने आये थे। आपके इस सद्भाव और सदुद्देश की हम प्रशंसा करते हैं। नहीं कह सकते आपने इस देश के किन-किन विद्वानों से वार्त्तालाप किया, किम-किस विषय में वार्तालाप किया और उन्हें कैसा पाया। आप तो यहाँ के संस्कृतज्ञो को कोई चीज़ ही नहीं समझते। फिर उनसे मिलकर आप क्या फ़ायदा उठा सकते हैं?
डाक्टर मेकडॉनल संस्कृत-शिक्षा के बड़े पक्षपाती हैं। आपकी राय है कि जो लोग “सिविल सर्विस” की परीक्षा पास करके इस देश में अफसरी करने आते हैं वे यदि विलायत ही से संस्कृत पढकर आवें तो अँगरेज़ी राज्य की जड पाताल