पर शिक्षा और दीक्षा आपने यहाँ नहीं पाई। जर्मनी के गाटिजन और इँगलेड के आक्सफ़र्ड-विश्वविद्यालयो में आपने ऊँचे दर्जे की शिक्षा प्राप्त की है। पुरानी जर्मन-भाषा, संस्कृत- भाषा, और भाषा-व्युत्पत्ति-शास्त्र के अध्ययन और विचार में आपने सविशेष परिश्रम किया है। प्रधान-प्रधान आकर-ग्रन्थों में एक परीक्षा आक्सफ़र्ड में होती है। उसकी भी एक सर्वोच्च शाखा है। उसका नाम है “आनर्स-कोर्स”। जो लोग उसमे पास होते हैं वे विशेष सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। इस परीक्षा को पास करके आचार्य्य मुग्धानल ने चीनी, जर्मन और संस्कृत-भाषा सम्बन्धी विश्वविद्यालय की छात्रवृत्तियाँ प्राप्त कीं। संस्कृत के प्रगाढ़ पण्डित सर मानियर विलियम्स का नाम पाठकों ने सुना ही होगा। उन्हीं से आपने चार वर्षों तक बराबर संस्कृत पढ़ी है। जैसे आप संस्कृत के चूड़ान्त पण्डित हैं वैसे ही जर्मन के भी हैं। १८८० से १८९६ तक, कोई २० वर्ष, आप आक्मफ़र्ड में जर्मन-भाषा के अध्यापक थे। इस भाषा के अध्यापक नियत होने के ८ वर्ष बाद से संस्कृत-अध्यापना का भी काम आपको मिला। १८८८ से १८९९ तक आप संस्कृत के सहकारी अध्यापक भी रहे। इसके आगे आप संस्कृत के “बाउन-प्रोफ़ेमरर” हुए। बाडन नाम के एक साहब बहुत सा रुपया जमा करके आक्सफ़र्ड में संस्कृत पढ़ाने का प्रबन्ध कर गये हैं। इससे जो कोई उनको नियत की हुई जगह पर काम करता है वह “बाडन-
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विदेशी विद्वान्