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विदेशी विद्वान्

ज्ञान इस देश के पण्डितों को ज़रूर था। क्योंकि यज्ञ में वेदी और हवनकुण्ड आदि बनाने के जो नियम वैदिक साहित्य में पाये जाते हैं वे इसी शास्त्र के अनुसार हैं। डाक्टर थीबो को गणित-शास्त्र से भी प्रेम है। उन्होने ज्योतिष पर जो निबन्ध लिखे हैं उनसे इस बात का प्रमाण मिलता है। जब वे काशी से प्रयाग बदल आये और म्योर-कालेज में अँगरेज़ी भाषा तथा दर्शन-शास्त्र के अध्यापक नियत हुए तब उन्होने अपने गणित-शास्त्र के ज्ञान को और भी उन्नत किया। अवकाश पाने पर वे गणित-शास्त्र का अभ्यास करते थे और यदि कोई बात समझ में न आती थी तो गणित-शास्त्र के अध्यापक बाबू रामनाथ चैटर्जी से पूछ लेते थे। अपनी जाति या अपने पद का उन्हे ज़रा भी घमण्ड न था और न अब है। अपने से कम महत्त्व के पदवाले हिन्दुस्तानियों से कोई बात पूछने में उन्हे कभी पसोपेश नहीं हुआ।

अँगरेज़ी और संस्कृत पढ़ाने के लिए बनारस-कालेज में जो अध्यापकी का पद था वह १८७७ ईसवी में तोड़ दिया गया। इस पद पर थीबो साहब सिर्फ़ दो वर्ष रहे। इसके बाद कुछ दिनों तक उन्होंने स्कूलो के इन्स्पेक्टर का काम किया। परन्तु शीघ्र ही वे बनारस-कालेज के अध्यक्ष, अर्थात् प्रिन्सिपल, कर दिये गये। १८८८ ईसवी तक आप इस पद पर रहे। संस्कृत की प्रथमा, मध्यमा और आचार्य्य-परीक्षायें उन्हों ने निकालीं। कुछ दिनों के लिए वे पञ्जाव