स्पेन्सर शान्तिभाव को बहुत पसन्द करता था। वह युद्ध के ख़िलाफ़ था। बोर-युद्ध का कारण उस समय के उपनिवेश-मन्त्री चेम्बरलेन साहब थे। उन पर, उनके इस अनुचित काम के कारण, स्पेन्सर ने अप्रसन्नता प्रकट की थी। उसके मरने के बाद उसकी जो एक चिट्ठी प्रकाशित हुई है उसमें उसने जापान को शिक्षा दी है कि यदि तुम अपना भला चाहते हो तो योरपवालों से दूर ही रहो और योरप की स्त्रियों से विवाह करके अपनी जातीयता को बरबाद न करो। नहीं तो तुम किसी दिन अपनी स्वाधीनता खो बैठोगे।
हर्बर्ट स्पेन्सर ने यद्यपि पाठशाला में शिक्षा नहीं पाई और यद्यपि वह संस्कृत की तरह की ग्रीक और लैटिन इत्यादि भाषाओ के ख़िलाफ़ था, यहाँ तक कि वह ग्रीक भाषा का एक शब्द तक नहीं जानता था, तथापि वह बहुत अच्छी अँग- रेज़ी लिखता था और अपने मन का भाव बड़ी ही योग्यता से प्रकट कर सकता था। उसकी तर्क-शक्ति अद्वितीय थी। जिस विषय का उसने प्रतिपादन किया है, जिस विषय में उसने बहस की है, उसे सिद्ध करने में उसने कोई बात नहीं छोड़ी। उसकी प्रतिपादन-शक्ति ऐसी बढ़ी-चढ़ी थी कि जो लोग उसकी राय के ख़िलाफ़ थे उनको भी उसकी तर्कना सुनकर उसके सामने सिर झुकाना पड़ता था। पर, खेद की बात है, उसकी क़दर उसी के देश, इँँगलेंड में, और देशो की अपेक्षा बहुत कम हुई। सच है, हीरे की क़्दर हीरे की खान में कम होती है।