विचार कर डाला। उसकी बुद्धि नये-नये सिद्धान्तों के निका- लने की एक विलक्षण यन्त्र बन बैठी। कोई ५० वर्ष तक उसने यह काम किया और अपने नये-नये सिद्धान्तो के द्वारा सारे संसार को चकित और स्तम्भित कर दिया।
प्रसिद्ध विद्वान् डारविन, स्पेन्सर का समकालीन था। १८५१ के लगभग उसने “आरिजिन आफ़ स्पिशीज़” (Origin of Species) अर्थात् “प्राणियों की उत्पत्ति” नाम की पुस्तक लिखी। उसमे उत्क्रान्ति, किंवा परिणतिवाद, के आधार पर उसने प्राणियों की उत्पत्ति सिद्ध की। परन्तु इस उपपत्ति के अनेक सिद्धान्त स्पेन्सर ने पहले ही से निश्चित कर लिये थे। इस बात को डारविन ने साफ़-साफ़ स्वीकार किया है।
डारविन की पूर्वोक्त पुस्तक के निकलने के कोई चार वर्ष बाद स्पेन्सर की “मानसशास्त्र के मूलतत्त्व” (Principles of Psychology) नामक पुस्तक निकली। उसको लिखने में स्पेन्सर ने इतनो मिहनत की कि सिर्फ़ १८ महीने में वह पुस्तक उसने तैयार कर दी। इस कारण उसकी नीरोगता में बाधा आ गई। तबीयत उसकी बहुत ही कमज़ोर हो गई और कोई दो-ढाई वर्ष तक वह कोई नई किताब नहीं लिख सका। हाँ, दिल बहलाने के लिए सामयिक पुस्तकों में वह कभी-कभी लेख लिखता रहा। इस बीच में स्पेन्सर का यश दूर-दूर तक फैल गया। “मानसशास्त्र के मूलतत्त्व” लिखने से उसका बड़ा नाम हुआ। वह अब एक विचक्षण दार्शनिक गिना२