छुटी। इसी के प्रभाव से उसने पूर्व-तत्त्व-ज्ञानियों के सिद्धान्तो को चुपचाप न मानकर सबकी परीक्षा की और उनके खण्डनीय अंश का कठोरता पूर्वक खण्डन किया।
सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र तक स्पेन्सर को घर पर ही शिक्षा मिलती रही। इतने दिनों में उसने गणित-शान्न, यन्त्र- शास्त्र, चित्र-विद्या आदि में अच्छा अभ्यास कर लिया। स्पेन्सर को संस्कृत की समकक्ष लैटिन और ग्रीक आदि पुरानी भाषाओं से बिलकुल प्रेम न था और विश्वविद्यालय में इनको पढ़े बिना काम नहीं चल सकता। इससे वह किसी कालेज में भरती नहीं हुआ। अब मुशकिल यह हुई कि कालेज की शिक्षा पाये बिना नौकरी कैसे मिल सकेगी। उस समय रेलवे ही का महकमा ऐसा था जहाँ विश्वविद्यालय की सरटीफ़िकेट दरकार न होती थी। इस कारण स्पेन्सर ने रेलवे का काम सीखना शुरू किया और १७ वर्ष की उम्र में वह यञ्जिनियर हो गया। आठ वर्ष तक वह इस काम को करता रहा। पर विद्या का उसे ऐसा व्यसन था कि इसके आगे रेलवे का काम उसे अच्छा न लगा। उसे छोड़कर वह अलग हो गया। नौकरी की हालत में एक यञ्जिनियरी की सामयिक पुस्तक में वह लेख भी लिखता रहा था। इससे लिखने में उसे अच्छा अभ्यास हो गया। १८४२ ईसवी में उसने नान-कनफ़ारमिस्ट ( NonConformist) नामक पुस्तक में “राजा का वास्तविक अधिकार” नाम की लेख- मालिका शुरू की। वह पीछे से पुस्तकाकार प्रकाशित हुई।