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विदेशी विद्वान्

बातों से अप्रसन्न न होता था। वह उलटा पुत्र को उत्साहित करता था। उसका कहना था कि जो बात तुम्हें अच्छी लगे वही करो। इसी से स्पेन्सर कीट-पतङ्गों के रूपान्तर और पौधो में होनेवाले फेरफार देखने ही में कई वर्ष तक लगा रहा।

स्पेन्सर ने किसी मदरसे में शिक्षा नहीं पाई। घर ही पर स्पेन्सर के पिता और चचा ने उसे शिक्षा दी। हाँ, कुछ दिन के लिए वह एक मदरसे में ज़रूर गया था। वहाँ उसके क्लास में १२ लड़के थे। वहाँ पाठ सुनाने का समय आने पर हर्बर्ट वेचारे को एकदम सब लडकों के नीचे जाना पड़ता था। पर गणित इत्यादि वैज्ञानिक शिक्षा का समय आते ही वह सबसे ऊपर पहुँच जाता था। प्रायः प्रति दिन ऐसा ही होता था। स्पेन्सर का पिता अच्छा विद्वान् था और चचा भी इससे वे दोनों जब मिलते थे तब किसी न किसी गम्भीर शान्त्र विषय की चर्चा ज़रूर करते थे। उनकी बातें स्पेन्सर ध्यान से सुनता था और उनसे बहुत फायदा उठाता था। पुत्र की प्रवृत्ति वैज्ञानिक विषयो की ओर देखकर पिता ने उसे और भी अधिक उत्तेजना दी और अपनी सारी विद्या-बुद्धि खर्च करके पुत्र के हृदय पर शास्त्र के मोटे-मोटे सिद्धान्त खचित कर दिये। इससे यह न समझना चाहिए कि स्पेन्सर को पुस्तकावलोकन से प्रेम न था। प्रेम था और बहुत था। परन्तु विशेष करके वह शास्त्रीय विषयों ही की पुस्तकें देखा करता था।