न्यूटन बहुत सबेरे उठता था और अपना सारा काम समय पर करता था। उसको क्रोध छू तक नहीं गया था। वर्षों के परिश्रम से लिखे गये उसके काग़ज़, एक बार उसके डायमंड नामक कुत्ते ने, मेज़ पर मोमबत्ती गिराकर, जला दिये। परन्तु उसने इतनी हानि होने पर भी क्रोध नहीं किया; केवल इतना ही कहा कि “डायमंड। तू नहीं जानता, तूने मेरी कितनी हानि की है।” न्यूटन यदि इँगलेड में न उत्पन्न होता तो शायद गैलीलियो की ऐसी विपत्ति उसे भी भोगनी पड़ती। वह बड़ा प्रसिद्ध ज्योतिषी, गणित-शास्त्र का ज्ञाता और तत्त्वज्ञानी हो गया। जहाँ उसका शरीर गड़ा है वहाँ पत्थर के ऊपर एक लेख खुदा हुआ है। उसका सारांश यह है―“यहाँ सर आइज़क न्यूटन का शरीर रक्खा है। इस विद्वान् ने अपनी विद्या के बल से ग्रहों की चाल और उनके आकार का पता लगाया, ज्वार-भाटा होने का कारण खोज निकाला; और प्रकाश की किरणों में रङ्गों के उत्पन्न होने का कारण जाना।” इतना विद्वान् होने पर भी, मरने के समय, उसने कहा कि “मैंने कुछ नहीं किया। मैं समुद्र के किनारे एक लड़के के समान खेलता सा रहा। समुद्र में अनेक प्रकार के रत्न भरे रहे; परन्तु दो-एक कड्कड-पत्थर अथवा सीपियों को छोड़कर और कुछ मेरे हाथ न आया।” अर्थात् ज्ञानरूपी समुद्र में से केवल दो-एक बूँद मुझे मिले, अधिक
नहीं। सत्य है; विद्या की शोभा नम्रता दिखाने ही में है।