डाक्टर जैकोबी का जन्म १८५० ईसवी में हुआ। बर्लिन और बान के विश्वविद्यालयों में संस्कृत और तुलनामूलक भाषा- शास्त्र आपने पढ़ा। १८७२ में आपको दर्शनशास्त्र के आचार्य्य की पदवी मिली। इसके बाद एक वर्ष तक आप लन्दन में रहे। १८७३ मे आप डाक्टर बूलर के साथ हिन्दुस्तान आये। यहीं आपका परिचय जैन-धर्म्म और जैन-साहित्य से हुआ। तभी से आपने इन विषयों का अध्ययन आरम्भ कर दिया और धीरे-धीरे इनमें ख़ूब पारङ्गत हो गये। स्वदेश को लौट जाने पर कई विश्वविद्यालयों मे आप संस्कृत पढ़ाते रहे। १८८९ ईसवी में आपकी बदली बान के विश्वविद्यालय को हो गई। आपने जैनों के कल्पसूत्र नामक ग्रन्थ का सम्पादन करके उसे प्रकाशित किया और उसकी भूमिका में यह सिद्ध किया कि जैन-धर्म बौद्ध-धर्म की शाखा नहीं, वह बौद्ध-धर्म से बिल्कुल ही जुदा धर्म है। इसके बाद आप ने हेमचन्द्र-कृत परिशिष्ट-पर्व्व का प्रकाशन किया और कई जैन-ग्रन्थों का अनुवाद भी योग्यतापूर्वक निकाला। जर्मनी के विद्यार्थियों के लाभ के लिए प्राकृत-भाषा-विषयक एक पुस्तक भी आपने लिखी। ‛ध्वन्या- लोक’ तथा ‘अलङ्कारसर्वस्व’ का अनुवाद भी, जर्मन भाषा में आपने कर डाला। पण्डित बालगङ्गाधर तिलक की तरह आपकी भी राय है कि वैदिक सभ्यता बहुत पुरानी है। योरप के विद्वान् उसे जितनी पुरानी समझते हैं उससे भी वह बहुत पहले की है।
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