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विदेशी विद्वान्


वहाँ जाने पर जब मैंने यह देखा कि न इमारत है और न कोई सामान है तब मैं थोड़ी देर के लिए निराश हो गया। हाँ इसमे सन्देह नहीं कि सैकड़ों इमारतों और सामान से अधिक मूल्यवान् अनेक मनुष्य शिक्षा के लिए आतुर और उत्सुक मुझे देख पड़े !" महीने दो महीने तक वाशिगटन ने उस प्रदेश के निवासियों की सामाजिक और आर्थिक दशा की अच्छी तरह नॉच की और जुलाई की चौथी तारीख़ को गिरजाघर के पास ही एक टूटी सी झोपड़ी में पाठशाला खोल दी। इस पाठशाला में वाशिंगटन ही अकेले शिक्षक थे । लड़के और लड़कियाँ मिलकर सब ३० विद्यार्थी छात्र थे। वे सब व्याकरण के नियम और गणित के सिद्धान्त मुखाग्र जानते थे; परन्तु उनका उपयोग करना न जानते थे। वे शारीरिक श्रम न करना चाहते थे। वे यह समझते थे कि मिहनत करना नीच काम है। ऐसी अवस्था मे, पहले पहल वाशिंगटन को अपने नूतन तत्त्वों के अनुसार शिक्षा देने में बहुत कठिनाइयाँ हुई। उन्होंने आलवामा रियासत की सामा- जिक और आर्थिक दशा का विचार करके यह निश्चय किया कि इस प्रान्त के निवासियों को कृषि-सम्बन्धिनी शिक्षा दी जानी चाहिए और एक या दो ऐसे भी व्यवसायों की शिक्षा देनी चाहिए जिनके द्वारा लोग अपना उदरनिर्वाह अच्छी तरह कर सके। उन्होने ऐसी शिक्षा देने का निश्चय कर लिया जिससे विद्यार्थियों के हृदय मे शारीरिक श्रम, व्यव-