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बुकर टी० वाशिगटन


नहीं गया था । कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय और अन्तःकरण (Hand, Head and Heart) की शिक्षा से अपनी जाति की उन्नति करना ही उसका प्रधान उद्देश था। अतएव उसने इसी उद्देश की सफलता के लिए यत्न करते रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इसके बाद, जिस हैम्पटन स्कूल मे उसने विद्या- भ्यास किया था वहीं उसने दो वर्ष तक शिक्षक का काम किया और सुप्रसिद्ध शिक्षक हो गया।

जाति-सेवा का आरम्भ

सन् १८८१ ईसवी में, अर्थात् तेईस-चौबीस वर्ष की उम्र मे, बुकर टी० वाशिंगटन हैम्पटन मे शिक्षक का काम कर रहा था। इसी समय उसे स्वतन्त्र रीति से जाति-सेवा और परोपकार करने का-प्राप्त की हुई शिक्षा को सफल करने का-अपने जीवन को सार्थक करने का-मौका मिला। दक्षिणी अमेरिका की आलबामा रियासत के टस्केजी नामक छोटे से गाँव के कुछ निवासियों ने जनरल आर्मस्ट्रॉग को एक चिट्ठी भेजी और यह लिखा कि हम लोग अपने गाँव मे काले आदमियों की शिक्षा के लिए एक माडल स्कूल (आदर्श पाठ- शाला) खोलना चाहते हैं। आपके पास कोई अच्छा शिक्षक हो तो भेज दीजिए। जनरल आर्मस्ट्रॉग ने मिस्टर वाशिगटन को वहाँ भेज दिया। इस विषय मे वाशिंगटन ने लिखा है कि-"टस्केजी जाने के पहले मैं यह सोचता था कि वहाँ इमारत और शिक्षा का सब सामान तैयार होगा; परन्तु