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बुकर टो० वाशिगटन


कितनी निकृष्ट हो गई, ये सब बाते इतिहास-ग्रन्थों से जानी जा सकती हैं। कुमारी एच० बी० स्टो ने अपने एक ग्रन्थ मे लिखा है-इन गुलामों को दिन भर धूप में काम करना पड़ता था। यदि काम मे कुछ सुस्ती या भूल हो जाय तो ओवर- सीयर उन्हें कोड़ों से मारता था। यहाँ तक कि उनके शरीर से लोहू बहने लगता था। रात को उन्हे पेट भर खाने को भी न मिलता था। एक छोटी सी झोपड़ी मे जानवरों की तरह वे रात भर बन्द कर दिये जाते थे। केवल धन के लोभ से पति और पत्नी,भाई और बहन,माता और पुत्र में वियोग कर दिया जाता था। यदि कोई गुलाम अत्यन्त दुःखित होकर भाग जाते तो उनके पीछे शिकारी कुत्तों के झुण्ड दौड़ा दिये जाते थे। इतना अन्याय होने पर भी, आश्चर्य यह है कि पादरी लोग दासत्व के इस घृणित रिवाज का समर्थन, बाइबिल के आधार पर, किया करते थे ! यद्यपि सन् १७८३ ईसवी मे अमेरिका मे स्वाधीनता प्रस्था- पित हो गई थी और यह तत्व मान्य हो गया था कि “ईश्वर की दृष्टि से सब मनुष्य-काले और गोरे-समान और स्वतन्त्र हैं" तथापि अमेरिकन लोगों ने लगभग १०० वर्ष तक नीग्रो जाति के काले मनुष्यों की स्वाधीनता कबूल न की! वे लोग नीग्रो जाति को 'मनुष्य के बदले अपना 'माल' (Property) समझते थे ! परन्तु कुछ विचारवान और सहृदय महात्माओं के आन्दो. लन करने पर यह मत धीरे-धीरे बदलने लगा। उत्तर-अमेरिका की रियासतों ने अपने गुलामों को छोड़ दिया। परन्तु दक्षिण-