भी है। उनकी अध्ययनशीलता और विलक्षण बुद्धि पर मुझे सदा आश्चर्य और हर्ष होता रहा है। अब मुझे इस बात को प्रकट करने मे बडी खुशी होती है कि वे हिन्दुस्तानी, फ़ारसी और अरबी भाषाओं के अच्छे पण्डित हो गये हैं और इन तीनों भाषाओं को बड़ी ही शुद्धता और सरलता-पूर्वक लिख और बोल सकते हैं।
२९ जून १८६६। | सैयद अब्दुल्ला, |
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मैं ख़ुशी से सेंट जान्स कालेज के एडवर्ड हेनरी पामर साहब की अरबी, फ़ारसी और हिन्दुस्तानी भाषा की योग्यता की तसदीक़ करता हूँ। मुझे इस बात तक के कहने में सङ्कोच नहीं कि मुझे अपने जीवन भर में किसी ऐसे योरप-निवासी से भेंट नहीं हुई जो भाषाओं का इतना विज्ञ हो जितने कि पामर साहब हैं।
ता° २७ जून १८६६। | मीर औलाद अली, |