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विदेशी विद्वान्

कौन है वह साहबे इकबाल व इजत नार्थकोट
रायट श्रानरबुल सर इस्टफर्ड ममदूहे जर्मा ।

पामर का उर्दू मे भी अच्छा दखल था। वे जिस भाव को चाहते उसे बड़ी खूबी से अदा कर देते। विलायतहुसैन नाम के एक मौलवी ने उनके ऊपर यह दोषारोपण किया कि उन्होंने दीवाने खुसरो से कुछ कविताये चुरा ली हैं। पामर ने इस विषय में अपनी सफाई दी और अपने को निर्दोष सिद्ध किया। इसके बाद उन्होंने उक्त मौलवी पर एक व्यङ्ग्यपूर्ण कविता रचकर उसकी खुब ख़बर ली। इस कविता का एक खण्ड नीचे उद्धृत किया जाता है। देखिए-

हां गाज़िये मतला तू लगा तेगे दो दस्ती
शश पारा कर इस मौलवी का पैकरे हम्ती ।
ही साकिये दौरा है दमे रिन्दी ओ मस्ती
हुशयार कि दम मे न बलन्दी है न पस्ती।
न खुम है न शीशा है न साग़र है न वादा
हर बार फिके नशये जुर‌अत है ज़ियादा। ,
आ सामने यह गो है यह चौर्गा है यह मैर्दा
मैं इल्म हूँ तू जहल, मैं श्रादम हूँ तु शैतां ।

इसे पढ़कर मौलवी साहब के होश ठिकाने आ गये । ड्यूक आव ऐडिनवरा के विवाहोत्सव के समय पामर ने एक मसनवी लिखी थी। उसका कुछ अंश सुन लीजिए-

किसकी यह शादी है किसकी यह फौज
जोश मारे है यह किस दरिया की मौज ।