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विचित्र प्रबन्ध।

बराबर पुछते रहते हैं कि इस सतखंडे महल में जो बड़ी सुन्दरी स्रो रहती है वह तुम्हारी कौन है?

एक दिन वह ब्राह्मण का लड़का बहुत उदास होकर पाठशाला से घर आया। उसने आकर राजकुमारी से कहा―मेरे साथी प्रतिदिन पाठशाला में मुझसे पूछते हैं कि उस सतखण्डे महल में जो परमसुन्दरी स्त्री रहती है वह तुम्हारी कौन है। मैं इसका कुछ उत्तर नहीं दे सकता। बताओ, तुम हमारी कौन हो?

राजकुमारी ने कहा―आज रहने दो, और किसी दिन बतलाऊँगी।

ब्राह्मण का बालक प्रतिदिन पाठशाला से लौटकर राजकुमारी पूछता था―बताओ, तुम हमारी कौन हो?

राजकन्या प्रतिदिन यही उत्तर देती कि, आज रहने दो और किसी दिन बता दूँगी। इसी प्रकार और चार पाँच वर्ष बीत गये। एक दिन ब्राह्मण-बालक ने बहुत बिगड़ कर कहा―जो तुम आज न बताओगी कि तुम हमारी कौन हो तो तुम्हारा मकान छोड़ कर मैं कहीं चला जाऊँगा।

तब राजकन्या ने कहा―अच्छा, कल तुमको अवश्य बता दूँगी।

दूसरे दिन पाठशाला से आकर ब्राह्मण-कुमार ने राजकुमारी से कहा―आज ही बतलाने के लिए तुम ने कहा था, सो बतलाओ।

राजकुमारी ने कहा―आज रात को भोजन करके जब तुम सोओगे तब बतलाऊँगी।

ब्राह्मण-बालक ने कहा―"अच्छा।" वह बैठा बैठा सूर्यास्त होने की प्रतीक्षा करने लगा। इधर राजकुमारी ने सोने के पलँग पर सुन्दर