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पन्दरह आना।

अधिकांश मृत मनुष्यों को विस्मृति के लोक में भेज देते हैं। वहाँ किसी के लिए भी स्थान की कमी नहीं है। यदि विधाता को बड़े बड़े मृत मनुष्यों के लिए हम लोगों के समान छोटे छोटे जीवित मनुष्यों को बहुत ही शोक-मलिन बना कर कोने में डाल रखना ही पसन्द होता तो वे पृथिवी को इतना सुन्दर और रमणीय क्यों बनाते? मनुष्य का हृदय मनुष्य के लिए इतना कमनीय क्यों होता?

नीतिज्ञ लोग हमारी निन्दा करते हैं। वे कहते हैं―हम लोगों का जीवन व्यर्थ गया। वे हम लोगों का तिरस्कार करते हुए कहते हैं―उठो, जागो, काम करो, व्यर्थ समय मत खोओ।

इसमें सन्देह नहीं कि बहुत ऐसे मनुष्य हैं जो काम न कर के समय का नष्ट करते हैं। किन्तु जो लोग काम कर के समय नष्ट करते हैँ वे काम का भी नष्ट करते हैं और समय को भी। उन के पैरों के भार से पृथिवी काँपती है। उनकी सचेष्टता के हाथीं से असहाय संसार की रक्षा करने के लिए भगवान् ने स्वयं कहा है―सम्भवामि युगे युगे।

जीवन व्यर्थ गया! वृथा जाने दो! कितने ही जीवन व्यर्थ जाने के लिए उत्पन्न हुए हैं। जीवन का यह अनावश्यक पन्दरह आना भाग विधाता के ऐश्वर्य को प्रमाणित कर रहा है। विधाता के जीवन-भाण्डार में दीनता नहीं है, इसके साक्षी के रूप में व्यर्थ जीवन धारण करनेवाले हम लोगों की एक बड़ी संख्या वर्तमान है। हम लोगों की कमी न होना, हमारी सदा अधिकता होते जाना आदि देखकर विधाता की महिमा स्मरण करी। जिस प्रकार