पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३५०

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1 पञ्चभूत ! ३३६ धूलिकण के नियमों से संचालित नहीं होता होगा। वहाँ आश्चर्य- मय अनियमित अन्नौकिक उत्सव होगा । परन्तु अनुसन्धान करने पर उसे मालूम हुआ कि सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, सप्तर्षिमण्डल आदि भी इसी धूलिकण के नियम से परिचालित होते हैं । ये भी उसो नियम के अधीन हैं। नूनन पदार्थ के जानने के लिए हम लोगों के हृदय में जो प्रानन्द उत्पन्न होता है वह हम लोगों का एक कृत्रिम अभ्यास हैवह स्वभाव नहीं है । वायु ने कहा-यह बात असत्य नहीं है । पारस पत्थर के लिए और अलाउद्दीन के दीपक के लिए स्वभाव से मनुष्यों के हृदय में एक प्रकार की इच्छा उत्पन्न होती है। बाल्यावस्था में 'कथामाला' की एक कहानी मैंने पढ़ी थी । उसमें लिखा था कि मरने के समय एक किसान अपने पुत्र सं कह गया कि तुम्हारे लिए अमुक स्थान में हमन धन पाड़ दिया है। उसका पुत्र निर्दिष्ट खेत में धन हूँढ़ने लगा. पर वह कृतकार्य नहीं हुआ । परन्तु वहाँ की धरती खादी जान के कारण ग्बत में उस वर्ष अन्न बहुत उत्पन्न हुआ, जिससे किमान की दीनता-दरिद्रता जाती रही। बाल्यावस्था में सभी बालकों को इस कहानी के पढ़नं से कष्ट होता है। खेती से धन सभी को मिलता है, परन्तु वह ता चाहता था गुन-धन, जो गुप्त हो होगया : यहा नियम का अभाव है, इसका प्राप्त हाना आक- स्मिक है, इसी कारण मनुष्यों को इस आर अधिक रुचि होती है। 'कथामाला' में चाहे जो लिखा हो, परन्तु वह किमान का पुत्र अपने पिता का कृतज्ञ नहीं हुआ, इसमें तनिक भी संदेह नहीं । वैज्ञानिक नियमों का तिरस्कार होना मनुष्यों को बहुत प्रिय है,