पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३२७

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विचित्र प्रवन्ध । 1 यास ही अलग किये जा सकते हैं। जब इच्छा हुई, समूचे हाथी को अलग कर दिया और उसके मन्द गमन को अलग। अतएव प्राचीन कवि जब पाडशी सुन्दरी की गति में गजेन्द्र-गति का आरोप करत थे उस समय उनके सामने हाथी नहीं रहता था; वे तो उसका मन्दगमन ही देखते थे। कवि जब किसी सुन्दर पदार्थ का वर्णन करना चाहता है उस समय उसके लिए आवश्यक है कि वह एक सुन्दर उपमा भी हूँढे, क्योंकि उपमा का केवल सादृश्य अंश ही हम लोगों के हृदय में प्रतिफलित नहीं होता; किन्तु उस वस्तु के अन्यान्य अंश भी हम लोगों के हृदय में अवश्य प्रतिफलित होते हैं अतएव हाथी की सूंड़ के साथ स्त्रियों के हाथ-पैरों की तुलना करना बड़े ही दुःसाहम की बात है। पर हमारे देश के पाटकां ने नता इस तुलना को हास्यास्पद ममझा और न निन्दित हो। इसका कारण यह है कि हमारे देश के पाठक हाथी की सूड की कंवल गालाई ही ग्रहण कर लेंगे तथा उसका और अंश छोड़ देंगे। इसी विलक्षण शक्ति के कारमा इस देश के पाठकां न उस तुलना को हंय नहीं समझा | गिद्धिन के साथ कानों का क्या मादृश्य है, यह बात निश्चित रूप से नहीं कहीं जा सकतो ! हम में तद- नुरूप कल्पना-शक्ति नहीं है। पर जब सोचते हैं कि सुन्दर मुँह के दोनों ओर दो गिद्धिने खटक रही है, तब हँसी नहीं पातो, क्योंकि हम लोगों की कल्पना-शक्ति इतनी तुच्छ भी नहीं है। मालूम होता है, नई शिक्षा के कारण हंसी रोकने की हम लोगों की शक्ति विकृत होती जाती है। इसी से ऐसा हो जाया करता है।