पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/३१९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विचित्र प्रबन्ध । सभी रस पशुओं के अव्यक्त और अपरिस्फुट साहित्य में वर्तमान हैं, परन्तु उनके साहित्य में हास्य-रम नहीं है। कदाचित् वानर की प्रकृति में इस हाम्य-रस का कुछ परिचय पाया जाता है । वानरों और मनुष्यों की प्रकृति बहुत सी बातों में समान है। जो बात असङ्गत है, उससे मनुष्य को दुखी होना चाहिए था; उससे हँसी आने का ता कुछ कारण नहीं है । कुरसी नहीं है, परन्तु कुरसी रक्खो हुई समझ कर यदि कोई बैठने लगे और भूमि पर गिर जाय तो इससे दर्शकों के सुखो हाने का क्या कारण है ? इसका यह एक ही उदाहरगा नहीं है किन्तु ममस्त कौतुकां मनुष्य का दुखी होना चाहिए। उस दिन की बातचीत में हम लोगों ने इसका एक कारण निश्चित किया था। उस दिन हम लोगों ने कहा था कि कौतुक की हँसी और प्रामाद की ही दोनों एक ही प्रकार की है। इन दोनों प्रकार की हसियों में एक प्रबलता रहती है। अतएव हम लोगों को यह संदेह होगया था कि आमाद और कौतुक, दानां पदार्थ, एक ही हैं. इनकी प्रकृति समान है। उस प्रकृति का निर्णय हो जाने से कौतुक के रहस्य का भी बहुत कुछ भेद खुल जायगा। हम लोगों के साधारण सुख में थोड़ा सा भेद है । किसी नियम का भङ्ग करने से जो घोड़ा मा दुःख होता है वह यदि न हो तो आमोद नहीं हो सकता । आमाद नित्य-नैमित्तिक नियमों के पालन से नहीं होता। वह तो कभी कभी होता है। उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। उम पाड़न और प्रयास के सङ्घर्ष से मनुष्यों के मन में जो उत्तेजना होती है, उसो से आमोद उत्पन्न होता है ।