नहीं। कोई कोई कहते हैं कि बीज ही फल का प्रधान अंश है, और यह बात वैज्ञानिक युक्ति से प्रमाणित भी की जा सकती है, तथापि बहुत से रसज्ञ ऐसे भी हैं जो फल तो खा लेते हैं पर उसका बीज फेंक देते हैं। इसी प्रकार किसी काव्य में यदि कोई विशेष शिक्षा हो और पाठक केवल काव्य-भाग को ही ग्रहण करके शिक्षा-भाग को छोड़ दे तो उसे दोष नहीं दिया जा सकता। और, जो लोग केबल शिक्षा की ओर ही विशेष ध्यान देते हैं उनको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि वे भी अपने काम में सफलता प्राप्त करें और सुखी रहे। सुख किसीको बल-पूर्वक नहीं दिया जा सकता। कुसुम के फूल से कोई रङ्ग निकालते हैं, कोई तेल निकालने के लिए उसके बीजों की प्रतीक्षा करते हैं और कोई उसकी शोभा ही देखते हैं। इसी प्रकार काव्य से काई इतिहास सीखते हैं, कोई दर्शनशास्त्र की युक्तियां निकालत हैं, कोई नीति और कोई व्यवहार का आविष्कार करते हैं तथा कोई काव्य से काव्य को ही ग्रहण करते हैं। जिसको जो मिलता है वह उसी को लेकर सन्तोष करता है। कोई किसी से विरोध नहीं करता। विरोध करने की आवश्यकता भी नहीं और उसमें कोई फल भी नहीं है।
प्राञ्जलता
नदी ने एक प्रसिद्ध अँगरेज़ कवि का नाम लेकर कहा―न मालूम क्यों, इस कवि की रचना मुझको पसन्द नहीं है।
दीप्ति ने और भी दृढ़ता से नदी के मत का समर्थन किया।
वायु का स्वभाव है कि वह, जहाँ तक टल सके, स्त्रियों के किसी