पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२८१

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विचित्र प्रबन्ध। मैंने कहा-वैज्ञानिक क्षिति को यह बात मालूम होगी कि एक गति के साथ दूसरी गति का, एक कम्पन के साथ दूसरे कम्पन का एक गहरा सम्बन्ध है । 'सा' सुर के बजने पर 'मा' सुर भी अपने भाप बज जाता है । आलोक-तरङ्ग, उत्ताप-तरङ्ग, ध्वनि-तरङ्ग, स्नायु. तरङ्ग आदि तरङ्ग आपस में एक प्रात्मीयता कं दृढ़ सूत्र में बंधी हुई हैं। हम लोगों की चेतनता भो तरङ्ग की एक कम्पित अवस्था है। इसी कारण समस्त संसार के कम्पन से उसका चना सम्बन्ध है । ध्वनि प्राकर उसके स्नायु को हिला देती है, प्रकाश पाकर उसकं स्नायु-तन्तुओं में एक अलौकिक आघात पहुँचाता है। अतएव उमके तरङ्गित स्नायु-समूह जगत के अन्यान्य कम्पनों के साथ उसको एक सुन्दर सूत्र में बाँध देते हैं । हृदय की वृत्ति, जिसे अँगरेज़ी में "मोशन' कहते हैं, हम लोगों के हृदय का आवेग है, अर्थात् उसका नाम गति है। उसके साथ भी संसार के अन्य कम्पनों का एक घना सम्बन्ध है । प्रकाश साथ, रङ्ग के साथ, और ध्वनि के साथ उसका एक कम्पना- स्मक सम्बन्ध है; उनका सुर एक है। इसी कारण सङ्गीत का प्रभाव हम लोगों के हृदय पर बड़े प्रबल रूप से पड़ता है, क्योंकि इन दोनों का परस्पर सम्बन्ध है। ये दोनों एक हैं। तूफान और समुद्र का जैसा एक विलक्षण सम्बन्ध है वैसा ही गान और हृदय का भी है। क्योंकि सङ्गीत के कम्पन द्वारा हम लोगों का सारा हृदय चञ्चल हो उठता है, एक अनिर्दिष्ट आवेग से हम लोगों का हृदय कम्पित हो जाता है और मन उन्मत्त सा हो उठता है। कोई