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पागल।

की महिमा प्राप्त की है। उनके साथ हिममण्डित हिमालय के गौरीशङ्कर शिखर की दुर्गमता और तरङ्ग-चञ्चल महासमुद्र की दुस्तरता अपनी सजातीयता जता रही है!

इसी तरह एक दिन अकस्मात् मालूम पड़ता है कि जिसको मैं अपनी गिरिस्ती, अपने घर की चीज़, समझता था वह मेरे घर का नहीं है। मैं जिसको हर घड़ी सुलभ समझ कर निश्चिन्त था उसके बराबर दुर्लभ वस्तु दूसरी नहीं है। आज तक मैं जिसको समझता था कि अच्छी तरह जानता हूँ और उसके चारों ओर की सीमा निश्चित करके निश्चिन्त था, आज देखता हूँ कि वह सब सीमाओं से अलग होकर एक अपूर्व रहस्यमय हो उठा है। जिसको छोटा, नियम और परिस्थिति के अनुकूल सुन्दर, व्यवस्था से स्थापित तथा अपना समझता था, उसको नाश की ओर से―इस श्मशानवासी पागल की ओर से एकाएक देखने पर मुँह से बात नहीं निकलती! कैसा आश्चर्य है! यह कौन है! जिसको सदा से जानता था वह यह कौन है! जो एक ओर से घर का है वही दूसरी ओर से हृदय का है। जो एक ओर से काम का है वही दूसरी ओर से सम्पूर्ण आवश्यकों के बाहर है। जिसको एक ओर से छू रहा हूँ वही दूसरी ओर क़ाबू के बाहर है। जो एक ओर से सबके साथ ख़ूब मिल गया है वही दूसरी ओर से बिलकुल बेमेल और भयङ्कर है। वह अपने में आप वर्तमान है।

नित्य जो नहीं देख पड़ता था उसे आज देखा। रोज़ के पचड़े से छुटकारा पाकर आज जैसे जान बची। मैं सोचता था कि चारों ओर के परिचित पदार्थों के घेरे में नित्य के नियमों से मैं