। परन्तु पञ्चभूत। समाज में हुआ । गद्य की अपेक्षा पद्य में अधिक कृत्रिमता है। उममें मनुष्य की रचना का अधिक भाग है । वह अधिक मजाया गया है। उसके बनाने में अधिक प्रयत्न किया गया है। हम लोगों के मन में जो विश्वकर्मा वर्तमान हैं, जो हम लोगों के हृदय को गुम रचना-शाला में बैठकर सदा नई नई रचना, नये विन्याम, नया प्रयत्न आदि किया करते हैं, उन्हीं के हाथ की कारीगरी पद्य में अधिक है। इसी कारण उसका इतना गौरव है। प्रकृत्रिम भाषा जल की ध्वनि के समान है-सूखे पत्तों की मर्मर ध्वनि के समान जहाँ मन है वहाँ कृत्रिम भाषा बड़े प्रयत्न से तैयार की जाती है । नदी नं बड़े ध्यान से विद्यार्थी के समान वायु की बातें सुनी। उन बातों को सुनने से उसका विनय-नम्र सुन्दर मुख-मण्डल एक नये प्रकाश से प्रकाशित हो गया। दूसरे दिन वह अपनी सम्मति प्रकाशित करने के समय इधर उधर करने लगती यो, परन्तु आज वह बई उत्माह से अपना मत प्रकाशित करने लगी। उसने कहा---वायु की बातें सुन कर मर मन में एक बात आई है। मालूम नहीं, मैं अपना मत ठीक ठीक प्रकाशित कर सकूँगी या नहीं। सृष्टि के जिस अंश का सम्बन्ध हम लोगों के हृदय से है अर्थात् मृष्टि का जो अंश हम लोगों के हृदय में केवल ज्ञान-संचार ही नहीं करता, किन्तु साथ ही साथ भाव का भी उदय करता है, जैसे, फूलों की सुन्दरता और पर्वतों की उच्चता आदि---उस अंश के निर्माण के लिए कितनी निपुणता, सुन्दरता, प्रयत्न आदि का उपयोग किया गया है: फूलों की हर एक पंखड़ी कैसी सुन्दर और गाल बनाई गई है। और, वे पंखड़ियाँ वृन्त पर कैसे अच्छे ढङ्ग से जमाई
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