पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६६

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पञ्चभूत। दायक हो जायगी। जो हो, प्रार्थी की सब बातें सुन लेने पर उमका विचार करना अच्छा होता है। मनुष्य के अन्तःकरण के दो भेद हैं। एक भाग अचेतन, विशाल, गुप्त और निश्चेष्ट है और दूसरा भाग क्रियावान, चेतन, चञ्चल और परिवर्तनशील है, जैसे कि एक महादेश और समुद्र होत हैं। समुद्र अपनी चञ्चलता से जो कुछ एकत्रित करता है, उसका वह त्याग भी करता जाता है और वह समुद्र का त्यक्त भाग तलदेश में जमता जाता है। फिर किसी दिन वही निश्चल, क्रिया- हीन एक महादेश हो जाता है। इसी प्रकार हम लोगों को चेत- नता भी जो कुछ एकत्रित करती है उसका त्याग भी करती है और वह त्यक्त भाग संस्कार, स्मृति, अभ्यास आदि के रूप में परिणत होकर अचेतन होता जाता है। यही हमारे जीवन की और हमारे चरित्र की दृढ़ नीव है। उसके भीतर घुस कर कोई उसकी तहों की संख्या को भी नहीं बतला सकता । ऊपर से जो देख पड़ता है अथवा भूकम्प होने से उसका जो भाग नीचे से ऊपर आजाता है उसीको हम लोग देख सकते हैं इस महादेश में अन्न, फूल, फल, मूल, औषधि प्रादि उत्पन्न होते हैं। यद्यपि यह महादंश देखने में क्रियाहीन और निश्चल मालूम पड़ता है, तथापि गुप्त रूप से इसके भीतर एक जीवनी शक्ति सदा काम करती रहती है। सागर में बड़ी बड़ी लहरें उठा करती हैं। वह हिलोरं मारा करता है, व्यापारी जहाजों को बहा ले जाता है, उन्हें डुबादेता है; वह बहुत अर्जन करता है तथा बहुत सी वस्तुओं का नाश करता है और इसमें भी सन्देह नहीं कि ।