पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२६५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५४ विचित्र प्रबन्ध । करने के लिए उद्यत होजाती है। इसी कारण वे दोनों देवियाँ हैं । भक्त- गण हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हैं, भगवति ! तुम महामाया हो, तुम स्वाधीन हो, इच्छामयी हो, तुम प्रकृति हो, तुम्ही शक्ति हो। वायु ने विश्राम करने की इच्छा से अपना पढ़ना वन्द किया। इसी अवसर में गम्भीर मुँह करके क्षिति बोली-वाह, क्या ही अच्छी बातें कहीं । मैं तुम्हारी शपथ करके कहती हूँ कि तुम्हारी बातें मेरी समझ में कुछ भी नहीं आई। जिमको तुम मन और बुद्धि कहते हो उसका तो हम लोगों में प्रभाव है, परन्तु हम लोगों में प्रतिभा है यह बात मेरे लिए नई है । आज तक किसी ने भी प्रतिभा के लिए हम लोगों की प्रशंमा नहीं की और आकर्षणशक्ति अधिक है, इसका भी कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है । नदी ने चिन्तित होकर कहा- यदि मन और बुद्धि का एक ही अर्थ में तुम व्यवहार करते हो और कहत हो कि वह हम लोगों में नहीं है तब ता अवश्य ही तुम्हारे साथ हमारा मतभेद है। वायु ने कहा-आप लोगों ने मेरी जितनी बातें सुनी हैं उन्हीं पर नियमानुसार तक करना उचित नहीं । नदी की पहली बाढ़ के हट जाने पर जो मैदान पड़ा रहता है वह बालुकामय है, उस पर हल चला कर जोतने से कुछ भी फल नहीं होता । धीरे धीरे दूसरी और तीसरी बाढ़ के पाने से उस मैदान पर मिट्टी की तह जम जाती है तब वह धरती जोती जा सकती है। इसी प्रकार मेरी बात चलते चलते बीच ही से रुक गई है, अभी यह समाप्त नहीं हुई। सम्भव है, भाग कुछ और बढ़ने पर यह तर्क द्वारा या तो कट ही जायगी, अथवा उपजाऊ भूमि के समान लाभ-