पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२५०

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पञ्चभूत । परन्तु पेट की ज्वाला से मनुष्य व्याकुल है। संसार में चाहे कितना ही बड़ा कष्ट क्यों न हो पर अन्न के लिए काम करना ही पड़ेगा। उधर लापरवाही करने से काम नहीं चल सकता। जब मैं देखती हूँ कि संसार में बहुत से ऐसे मनुष्य हैं, जिनका दुःख कष्ट मनुष्यत्व आदि हम लोगों का मालूम नहीं है; ऐसे बहुत से मनुष्य हैं जिनसे हम काम लेते हैं, उन्हें तनख्वाह देते हैं, पर उनसे म्नेह नहीं करते, उन्हें मान्त्वना नहीं देत, तब जान पड़ता है कि पृथिवी का बहुत मा हिस्सा ऐमा है जो अन्धकार में छिपा हुआ है, जिसे हम लोग अभी तक दम्ब भी नहीं सके। पर उस अज्ञात और दीमिहीन दश के रहनेवालों में भी प्रम है और वे प्रेम करने के योग्य भी हैं। मैं तो समझती हूँ कि जिनमें महिमा नहीं है, जो एक गन्द प्रावरण में रहते हैं और अपने का अच्छी तरह व्यक्त नहीं कर सकते, यहाँ खुद भी अपने को नहीं पहचानते,-मूक-मुग्ध भाव से सुख-दुःख आदि सहने रहते हैं, उनके मनुष्यत्व का प्रकाशित करना और हम लोगों के साथ उनका परिचय करा देना तथा उनके ऊपर काव्य का प्रकाश डालना पाजकल के कवियां का कर्तव्य है। क्षिति ने कहा- पहले ज़माने में किसी ममय सभी बातों में प्रबलता का कुछ विशेष आदर था। उस समय मनुष्य-समाज असहाय और अरक्षित घा। जो प्रतिभाशाली-क्षमताशाली होता था वही समाज कं सारे स्थान पर अधिकार जमा लेता था । इस ममय सभ्यता के सुशासन और सुव्यवस्था के कारण बहुत से विघ्न दूर हो गये हैं तथा प्रबलता की अत्यधिक मर्यादा बहुत कुछ तक कि