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विचित्र प्रबन्ध।

इस संसार में एक पागल हैं। संसार मेँ जो जो अद्भुत अमावनीय है उसे ही लाकर वह उपस्थित कर देता है। वह केन्द्र से अतीत "सेन्ट्रीफ़्युनल" है। संसार के सभी पदार्थों को वह नियम के बाहर की ओर ही खींच रहा है। नियम का अधिष्ठाता देवता संसार के सब मार्गों को चक्करदार मार्ग का रूप देने की चेष्टा करता है, और यह पागल देवता सबको तोड़ फोड़ कर गोल कर देने की चेष्टा करता है। यह पागल देवता अपने ख़याल से सरीसृप ( रेंगनेवाले जीवों ) के वंश में पक्षियोँ और बन्दर के वंश में मनुष्यों की उद्भावना करता है। जो हुआ है और जो है उसी को चिरस्थायी रूप से रखने की संसार में एक भारी चेष्टा देखी जाती है। यह पागल उन सबको नष्ट भ्रष्ट करके, जो नहीं है, उसीके लिए राह तैयार करता है। इसके हाथ में वंशी नहीं है, इसके गाने मेँ सामञ्जस्य का स्वर नहीं है। यह जब पिनाक बजाता है तब विधि-विहित यज्ञ नष्ट हो जाता है और न मालूम कहाँ से उड़कर अपूर्वता आ जाती है। पागलपन भी इसकी कीर्ति है और प्रतिभा भी इसी की कीर्ति है। इसके आकर्षण से जिसका तार टूट जाता है वह पागल होता है और जिसका तार अपूर्व स्वर से बज उठता है वह प्रतिभाशाली हो जाता है। पागल दस आदमियों से अलग है और प्रतिभाशाली भी वही है। परन्तु पागल दस से अलग ही रह जाता है, और प्रतिभाशाली दस को ग्यारह के कोठे में खींच लाकर दस के अधिकार को बढ़ा देता है।

वह केवल पागल, केवल प्रतिभा-शाली ही नहीं है। वह हम