पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२३९

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२२५ विचित्र प्रबन्ध । यह कौन बात होने लगी ? नदी ने तुमसे दूसरी बात पूछी, और तुम दूसरी बात कहने लगे। मैंने कहा-यह बात मुझे मालूम है । पर बातचीत में ऐसा उत्तर दिया जा सकता है। मन एक प्रकार का जल उठनेवाला पदार्थ है। जहाँ उस पर प्रश्न की चिनगारी गिरती है वहाँ सम्भव है कुछ भी न हो, और वहाँ से दस हाथ दूर पर भभक उठे। किसी कमेटी में बाहर के आदमी नहीं जा सकते, उनका वहाँ जाना निषिद्ध है। पर यदि कोई महोत्सव हो तो उसमें जो आता है वही बड़े आदर से बैठाया जाता है। हम लोगों की बात- चीत की सभा भी एक प्रकार का महोत्सव है। यहाँ यदि बिना बुलाये कोई बात चली आवे तो प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत करना चाहिए। उसको उचित स्थान पर बैठाना चाहिए। यदि ऐसा न किया जाय तो फिर उत्सव की महत्ता ही क्या है ? क्षिति ने कहा-मुझसे गलती हुई । ठीक है, जो कहते थे वही कहो । प्रह्लाद 'क' अक्षर पढ़ने के समय कृष्ण का स्मरण होने से प्रेम-गद्गद हो जाता था, वह राने लगता था। इसी कारण उसकी वर्णमाला समाप्त भी नहीं हुई। यदि किसी प्रश्न के सुनने से दूसरी बात का उत्तर तुम्हें स्मरण हो आवे तो क्या किसी बात के समाप्त होने की कभी सम्भावना की जा सकती है । पर प्रह्लाद की प्रकृति के मनुष्यों को उनकी इच्छा के अनुसार चलने देना ही अच्छा है। जो मन में आवे वही उनको बोलनं देना चाहिए, नहीं तो प्रह्लाद की घटना के समान क्या दूसरी घटना नहीं हो सकती ? मैंने कहा-मैं यही कहता था कि जिससे हम लोग प्रेम करते