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पञ्चभूत । २१६ साधारण अभावों की केवल पूर्ति करनी पड़ती है। उसके लिए दर्शन, विज्ञान तथा समाज-तत्त्व आदि जानने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। जो कुछ प्राचीन परिवार-नीति,प्राम-नीति, प्रजा-नीति आदि की आवश्यकता है, यहाँ महज ही मनुष्य-प्रकृति के साथ मिल कर अखण्ड जीवित भाव धारण कर सकती हैं क्षुद्र होने पर भी इसमें सुन्दरता है, जो बल-पूर्वक अपनी और चित्त को खींच लेती है। यह सुन्दरता इस छोटे से अशिक्षित गाँव में कमल के समान विकसित हुई है और अहङ्कारी सभ्य- समाज को आदर्श की शिक्षा देती है। अतएव लन्दन, पैरिस आदि का सभ्यता-कोलाहल संवाद-पत्रों द्वारा सुनाई पड़नं पर भी यह छोटा सा गाँव मर हृदय में एक प्रधान आसन पर विराजमान है। इसी कारगा इस गाँव पर मुझे श्रद्धा अनेक प्रकार की चिन्ताओं से व्यस्त मेरे हृदय के निकट यह छाटा मा गाँव तानपूर के सुर के समान एक आदर्श उपस्थित करता है । वह कहता है-मैं बड़ा नहीं हूँ, और न विस्मय-जनक ही हूँ। मैं ता छाटा हूँ, तथापि सम्पूर्ण हूँ। अतएव यह बात अवश्य माननी पड़ेगी कि अनेक अभावों के रहने पर भी मुझमें एक प्रकार की मधुरता है। मैं छोटा हूँ, इस कारण आप मुझे तुच्छ समझ सकते हैं; पर मैं सम्पूर्ण हूँ और इस कारण सुन्दर हूँ। वह सुन्दरता हो तुम लोगों के जीवन का आदर्श है। बहुत लोग मेरी बातें सुन कर हँसी को न रोक सकेंगे तथापि मुझे यह कह देना उचित है कि इन दीप्ति-होन किसानों के मुँह पर मैं सुन्दरता की एक प्राभा देखता हूँ जो मनोहर स्त्री के सौन्दर्य 1